विमर्श … खुद के अंदर की और अपने आसपास के साथ -२, दूर दराज की चीजों पर भी , गहरी ,वस्तुनिस्ठ और दीर्घकालिक सत्यों को जानने ,पहचानने की कोशिश करना। गाँव-गिरांव और कस्बों -नगरों के संवैधानिक और अधुनिक विमर्श की परिधि में लाना और विकास के माडल के असुंतलन और ताकतवर के पक्ष में लगातार होते झुकाव को समझकर उसे बृहद सामाजिक सरोकारों से जोड़ने के लिए जनकल्याण में लगी समस्त शक्तियों को एक साथ लाने की भी कसरत करते रहना। और असहमति के साथ -२ संबंधों का निर्वाह करना विमर्श की अनिवार्यता है।
Tuesday, December 11, 2012
राजनैतिक जीवान मे वेदान्त
उपनिषदों मे वर्णित जीवान क वास्तविक अर्थ ऐवम सत्यों का लोगों की सेवा और कल्याण हेतु प्रयोग करना ही मानव जीवान का चरम लक्ष्य होना चाहिए |
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