मंत्रणा

विमर्श … खुद के अंदर की और अपने आसपास के साथ -२, दूर दराज की चीजों पर भी , गहरी ,वस्तुनिस्ठ और दीर्घकालिक सत्यों को जानने ,पहचानने की कोशिश करना। गाँव-गिरांव और कस्बों -नगरों के संवैधानिक और अधुनिक विमर्श की परिधि में लाना और विकास के माडल के असुंतलन और ताकतवर के पक्ष में लगातार होते झुकाव को समझकर उसे बृहद सामाजिक सरोकारों से जोड़ने के लिए जनकल्याण में लगी समस्त शक्तियों को एक साथ लाने की भी कसरत करते रहना। और असहमति के साथ -२ संबंधों का निर्वाह करना विमर्श की अनिवार्यता है।

Tuesday, March 22, 2011

Bhagat singh

Inqalaab... Jindabaad!
Posted by SRSHANKAR at 10:45 AM 1 comment:
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