Tuesday, March 22, 2011

Bhagat singh

Inqalaab... Jindabaad!

1 comment:

  1. मारा..मारी..तीन पांच...और ९९ के चक्कर में असली टंच काम तो सिरे से छुट ही जाता है...यही नहीं..जिंदगी का सिरा ही हाथ से निकल जाता है..और फिर रेत को मुट्ठी में बंधने की हर कोशिश इन्सान की असफल होती जाति है तब तक,जब तक की सीमेंट के साथ उसे सांचे में ढालने की समझ और तकनीक न दिमाग में जाये.
    उसी तकनीक की तलाश में तालाबों में डुबकियाँ लगता में फिर से एक नयी दुबकी लगाने को आतुर हूँ..और कोशिश करूंगा..की पानी न पी जून..अधिक तैरने के चक्कर में..क्योंकि मुझे पता है अधिक या कम मात्रा का महत्व नहीं है..महत्त्व है तो ..इस दौर में आक्सीजन और गहरी सांस का जो हमें तलब में डूम कर मर जाने से बचाती है.

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