Monday, December 30, 2013

मैं कहता अँखियन देखी !

भारत में कठोर श्रम को सम्मान न मिलना अजीब बेवकूफी है ,ठीक है श्रम विभाजन को महत्त्व देना ,पर शरीरी श्रम को हीनतर कैसे कहा जा सकता है,.वह भी ,जब वह दूसरों की सेवा या कल्याण के लिए किया जा रहा हो ?
तो यैसे में एक लड़ाई यह बहुत बड़ी है।जिसे राजनैतिक रूप से गांधी ने शरू किया था ,और जिसे किसी भी राजनेता ने परवान नहीं चढाया ,कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जरुर सादगी को पकड़ लिया परन्तु बिना श्रम की सादगी  नाकारापन को बढाती है,वैसे ही जैसे बिना नैतिकता की आधुनिकता आवारापन को बढ़ाती  है। तो सवाल यही है की श्रम को भारतीय समाज में कैसे प्रतिष्ठित किया जाये ,क्योंकि उसकी प्रतिष्ठा  से ही नविन अनुसन्धान,प्रतिष्ठान खुल सकेंगे और समाज में सुव्यवस्था आ सकेगी ,सफाई,स्वस्थ्य ,निर्माण,सब कुछ श्रम पर टिका हुआ है ,पूर्ण तकनीकी आगमन के बाद भी हम रोबोट से सब कुछ थोड़े ही करवा सकेंगे । 

No comments:

Post a Comment