स्त्री की चिंता या स्त्री विमर्श की !!?
महिला में सौन्दर्य देखना कोई बहुत बड़ी रचनात्मकता नहीं,और न ही महिलाओं को बहुत सुन्दर दिखाने के फेर में पड़ना चाहिए। बल्कि महिला भी अपने काम,संघर्ष और उपलब्धियों से जिस दिन प्रेम करने लगेगी ,उसी दिन से उसकी असली आजादी और उन्नति शुरू हो जायेगी। वह न करे मेकअप ,वह न सजे ,उसकी मर्जी हो तो सज भी ले ,उसपर न लिखी जाएँ नख-शिख वर्णन की कवितायें ,उसके मात्रत्व को न उकेरा जाये महान बनाकर ,न बनाया जाये उसे ,कविता की प्रेरणा ,और न की जाये उसकी प्रकृति के सौन्दर्य से तुलना।
इसकी कत्तई जरूरत जिस दिन नारी को नहीं रहेगी,उस वक्त उसके मनुष्य होने ,वैज्ञानिक बनने ,समाजशाश्त्री बनने ,नेता बनने ,साहित्यकार बनने ,यायावर बनने ,और ढेरों रोमांचक और ज्ञानवर्धक अनुभवों को दुनिया से प्राप्त करने की सम्भावना पूर्ण हो जायेगी। तब उस नारी का दर्शन होगा ,जिसे पुरुष -स्त्री बराबरी का तमगा नहीं लटकाना होगा। तब खुद बी खुद दोनों पहिये अपनी-२ भूमिका और अस्तित्व को पूर्णतः निभाएंगे। जरा सोचिये वह दुनिया कितनी खुबसूरत होगी.और कितनी आनंददायक भी।
पर क्या यह संभव है ? हाँ !यह संभव हो रहा है .
अब एक क्रांति की जरूरत है....सेक्सुअल रेवोल्युशन .
नारी ..स्त्री...वह पुरुष की दासी और उसकी फोटोस्टेट दोनों बनने से इनकार कर दे..आज वाली नहीं..जो पश्चिम की भोगवादी जाल में फंसी हुयी है..इससे उलट..एक नयी दिशा में..नारी को दासता..के साथ प्रोडक्ट ..बनने के मोह से निकलना होगा...इसके लिए एक नयी आग चाहिए...जो उसको..कुंए और खाई दोनों से बचा कर बदलने के लिए तैयार करे...यदि येसा हो सके..तो हम एक नए मनुष्य..नयी मनुष्यता को पा सकते हैं.
महिला में सौन्दर्य देखना कोई बहुत बड़ी रचनात्मकता नहीं,और न ही महिलाओं को बहुत सुन्दर दिखाने के फेर में पड़ना चाहिए। बल्कि महिला भी अपने काम,संघर्ष और उपलब्धियों से जिस दिन प्रेम करने लगेगी ,उसी दिन से उसकी असली आजादी और उन्नति शुरू हो जायेगी। वह न करे मेकअप ,वह न सजे ,उसकी मर्जी हो तो सज भी ले ,उसपर न लिखी जाएँ नख-शिख वर्णन की कवितायें ,उसके मात्रत्व को न उकेरा जाये महान बनाकर ,न बनाया जाये उसे ,कविता की प्रेरणा ,और न की जाये उसकी प्रकृति के सौन्दर्य से तुलना।
इसकी कत्तई जरूरत जिस दिन नारी को नहीं रहेगी,उस वक्त उसके मनुष्य होने ,वैज्ञानिक बनने ,समाजशाश्त्री बनने ,नेता बनने ,साहित्यकार बनने ,यायावर बनने ,और ढेरों रोमांचक और ज्ञानवर्धक अनुभवों को दुनिया से प्राप्त करने की सम्भावना पूर्ण हो जायेगी। तब उस नारी का दर्शन होगा ,जिसे पुरुष -स्त्री बराबरी का तमगा नहीं लटकाना होगा। तब खुद बी खुद दोनों पहिये अपनी-२ भूमिका और अस्तित्व को पूर्णतः निभाएंगे। जरा सोचिये वह दुनिया कितनी खुबसूरत होगी.और कितनी आनंददायक भी।
पर क्या यह संभव है ? हाँ !यह संभव हो रहा है .
अब एक क्रांति की जरूरत है....सेक्सुअल रेवोल्युशन .
नारी ..स्त्री...वह पुरुष की दासी और उसकी फोटोस्टेट दोनों बनने से इनकार कर दे..आज वाली नहीं..जो पश्चिम की भोगवादी जाल में फंसी हुयी है..इससे उलट..एक नयी दिशा में..नारी को दासता..के साथ प्रोडक्ट ..बनने के मोह से निकलना होगा...इसके लिए एक नयी आग चाहिए...जो उसको..कुंए और खाई दोनों से बचा कर बदलने के लिए तैयार करे...यदि येसा हो सके..तो हम एक नए मनुष्य..नयी मनुष्यता को पा सकते हैं.