Thursday, January 30, 2014

अरहर के खेत की खुत्थी कितनों के पाँवों में घुसी ?हम लोगों को बचपन में खुले में शौच करना ही था ,मेरे गाँव में ५२ बीघे का चारागाह था ,सब उसमे उत्सर्जन करते थे ,थोडा दूर था ,तो हम बालक लोग कई बार तीव्र दबाव के वशीभूत होकर गाँव से सटे खेतों में ही निपटान कर लेते थे ,जिसके लिए अरहर के पेड़ों की छाया सर्वाधिक आदर्श स्थल होती थी,इस चक्कर में कभी-२ सरपट दौड़ भी लग जाती थी...और खेत के अंदर कहीं-कहीं काटी गयी अरहर के पेड़ का निकला मोटा नुकीला तना चाकू की तरह हम लोगों के पैरों में धंस जाता था,खून तेजी से निकलता,उसमे हम हमलोग मिट्टी और खपड़े के टुकड़े लगाकर खून रोकते ,कहटते थे ,की खपड़े का लाल टुकड़ा खून रोक देता है .आज हम वकीलों की भाषा में उस चोट को 'काजिंग हर्ट विथ शार्प वेपन्स '..कह सकते हैं ,यानी अरहर का नुकीला हिस्सा हमारा अपराधी हो जाता था .
के और दिलचस्प काम यह होता था,की निपटान के दौरान यदि अरहर में फल आये होते थे ,तो दो-चार हरे-२ गुच्छे हम लोग मुंह से छील-२ कर खाते रहते थे ...आज सोचते हैं की तमाम 'अन्हाईजेनिकता '
के बावजूद उन पलों को जीना और आज उनकी स्मृति एकदम मस्त कर देती है .

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