संसार के पहले वामपंथी वरूण के पुत्र नारद थे ,उन्होंने अपने सौतेले भाई वशिष्ठ के विरोध में इस पंथ को अपनाया था।हालांकि भृगु वंशी इसके असली स्थापक थे ,लेकिन किसी व्यक्ति के तौर पर प्रथम नाम नारद का आता है जिसने वेदों मे वाम विधि की रचना करते हुए स्थापना की और इंद्र जैसे गैरप्रतिष्ठित राजा, (जो कि अपनी स्थिति कैस्पियन सागर के पास नवनिर्मित इंद्रनगरी और देव उपाधि को प्रचारित एवं मजबूत करने के लिए कुछ भी करने को तैयार था) से मधु और पुरस्कार लेकर उसकी स्तुति में एक सूक्त की रचना कर दी(जैसे आधुनिक कम्युनिस्टो ने इतिहास मे कांग्रेस का चारण पाठ किया है)।
इसीलिए नारद वामदेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।पहला वामपंथी भी मनमौजी ,आवारा और भुक्खड प्रकृति का था। कौशिक ग्रामपति के अवैध पुत्र 'काकेशियन' इंद्र ने बडा होकर पिता को मारकर खुद को ग्रामपति बनाया और बाद में अनेक जीत हासिल करके खुद को 'देवता'नाम से घोषित किया।और अपनी नगरी को देवलोक के रूप में प्रतिष्ठित कराया।इंद्र के पहले 'देवता 'नाम का कोई अस्तित्व नहीं था।
नारद यानी वामदेव का चिरस्मरण रखने की आवश्यकता है😊!
इसीलिए नारद वामदेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।पहला वामपंथी भी मनमौजी ,आवारा और भुक्खड प्रकृति का था। कौशिक ग्रामपति के अवैध पुत्र 'काकेशियन' इंद्र ने बडा होकर पिता को मारकर खुद को ग्रामपति बनाया और बाद में अनेक जीत हासिल करके खुद को 'देवता'नाम से घोषित किया।और अपनी नगरी को देवलोक के रूप में प्रतिष्ठित कराया।इंद्र के पहले 'देवता 'नाम का कोई अस्तित्व नहीं था।
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