सहिष्णुता एक नकारात्मक अवधारणा है।सहिष्णुता और असहिष्णुता में कोई मौलिक भेद नहीं होता।बस परिणामात्मक अंतर होता है।
सहिष्णुता का अर्थ सब्र करना है तो असहिष्णुता का अर्थ है सब्र का पैमाना छलक जाना।अर्थात सहन करने की शक्ति जिसे आम बोलचाल में सहन करने की शक्ति कहते हैं ,वही दूसरे शब्दों में सहनशीलता है।
और सहनशीलता की भी अपनी एक सीमा होती है।सहनशीलता व्यक्तिगत और सामाजिक भी होती है।आदमी को बहुत कुछ मजबूरी में सहन होता है ,तो कुछ चीजें वह स्वभाववश सह लेता है।सहता रहता है।लेकिन आखिर कब तक ???
इसलिए किसी भी व्यक्ति अथवा समाज देश की सहिष्णुता उसके धैर्य और सहने की शक्ति पर निर्भर करती है , इससे भी साफ़ होता है की सहिष्णुता एक नकारात्मक या निरोधक वृत्ति है जो स्वतः स्फूर्त होने की जगह कंडीशनल होती है वह अपने पर नियंत्रण रखने की कोशिश है।
इसलिए सहिष्णुता कोई यैसी अवधारणा नहीं है जो बहुत आदर्श और असीमित प्रकार की मानवता की भावना से ओतप्रोत होती है।
वह एक तरह की मानसिक अवस्था होती है जो हमारे सब्र रखने और विपरीत चीजों लोगों और परिस्थितियों को सहन करने की शक्ति पर निर्भर करती है।
इसलिए यह किसी व्यक्ति समाज और राष्ट्र का सकारात्मक पक्ष नहीं बल्कि उसके अंतर्विरोधों को भी दर्शाती है ,और आपसी खींचतान और टकराव को कन्ट्रोल यानि नियंत्रित रखने की कोशिश का स्वरूप है।
इसलिए यह हमेशा संवेदनशील रहती है रहेगी।सब्र के पैमाने का क्या ?? वह कभी भी छलक सकता है।तो उसे सबको ध्यान रखना पड़ता है।
ताकि इस चक्कर में सौहार्द्र न बिगड़ या खत्म हो जाये।क्योंकि सौहार्द्र ही असल सक्रात्मकता है जो देश समाज और व्यक्ति को आगे आगे बढ़ाता है।यह अगली पोस्ट में चर्चा का विषय होगा।
सहिष्णुता का अर्थ सब्र करना है तो असहिष्णुता का अर्थ है सब्र का पैमाना छलक जाना।अर्थात सहन करने की शक्ति जिसे आम बोलचाल में सहन करने की शक्ति कहते हैं ,वही दूसरे शब्दों में सहनशीलता है।
और सहनशीलता की भी अपनी एक सीमा होती है।सहनशीलता व्यक्तिगत और सामाजिक भी होती है।आदमी को बहुत कुछ मजबूरी में सहन होता है ,तो कुछ चीजें वह स्वभाववश सह लेता है।सहता रहता है।लेकिन आखिर कब तक ???
इसलिए किसी भी व्यक्ति अथवा समाज देश की सहिष्णुता उसके धैर्य और सहने की शक्ति पर निर्भर करती है , इससे भी साफ़ होता है की सहिष्णुता एक नकारात्मक या निरोधक वृत्ति है जो स्वतः स्फूर्त होने की जगह कंडीशनल होती है वह अपने पर नियंत्रण रखने की कोशिश है।
इसलिए सहिष्णुता कोई यैसी अवधारणा नहीं है जो बहुत आदर्श और असीमित प्रकार की मानवता की भावना से ओतप्रोत होती है।
वह एक तरह की मानसिक अवस्था होती है जो हमारे सब्र रखने और विपरीत चीजों लोगों और परिस्थितियों को सहन करने की शक्ति पर निर्भर करती है।
इसलिए यह किसी व्यक्ति समाज और राष्ट्र का सकारात्मक पक्ष नहीं बल्कि उसके अंतर्विरोधों को भी दर्शाती है ,और आपसी खींचतान और टकराव को कन्ट्रोल यानि नियंत्रित रखने की कोशिश का स्वरूप है।
इसलिए यह हमेशा संवेदनशील रहती है रहेगी।सब्र के पैमाने का क्या ?? वह कभी भी छलक सकता है।तो उसे सबको ध्यान रखना पड़ता है।
ताकि इस चक्कर में सौहार्द्र न बिगड़ या खत्म हो जाये।क्योंकि सौहार्द्र ही असल सक्रात्मकता है जो देश समाज और व्यक्ति को आगे आगे बढ़ाता है।यह अगली पोस्ट में चर्चा का विषय होगा।
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