India will alwayes Undivided Nation !
भारत में राष्ट्र बहुत पहले से ही मौजूद था।हाँ वह शासकों में नहीं विभिन्न राज्यों और रियासतों के अधीन रह रही जनता में समान रूप से विद्यमान था।और यह इतिहासिक तथ्य भी है कि आधुनिक काल का जो भारत है।उसको बनाने में ख़पीं 554 रियासतों के राजाओं से अधिक उनकी जनता की पहल पर निर्मित हो सका था।दक्षिण त्रावणकोर से लेकर उत्तर पश्चिम जोधपुर जूनागढ़ तक आम जनता के प्रत्यक्ष दबाव और आंदोलनों ने रियासतों को भारत में विलय करके एक राष्ट्र राज्य के निर्माण की नीव रखी।
इसलिए भी और गुप्त काल के प्राचीन वक्त में भी भारतीय राष्ट्र यहाँ की जनता में रच बस गया था ,मौर्य वंश से जो इस भारतीय राष्ट्रिय एकता के तत्व उदभूत व निर्मित हुए थे वह 1000 साल तक राजाओं में भी बने रहे।हर्ष के काल में जब भारत आखिरी बार राष्ट्रिय एकसूत्रता में बंधा दीखता है।तो तब भी वह राजाओ के नहीं आम जनमानस के आपसी संपर्क रहनसहन सोच और व्यवसाय व्यापर तथा शिक्षा के चलते था।
हाँ शुरुवाती मुस्लिम आक्रांताओं के आने तक राजपूत क्षत्रिय ब्राह्मण और वैश्य और शुद्र राज्य भारतीय राष्ट्र की राजनैतिक एकता को भूल आपस में लड़ने लगे थे।खूब कलह जारी था।
इसलिए हारे और गुलाम हुए।तथा हजार साल गुलाम रहे।बीच में अकबर ने फिर से एक बार अखिल भारतीय राष्ट्रिय एकता के तत्व को समझकर भारत को एकत्व के सूत्र में वैसे ही बांधने की कोशिश की जैसे कभी चाणक्य ने किट था और वैसे से भी बेहतर फिर सरदार पटेल ने 1947 में 554 रियासतों और ब्रिटिश भारत को मिलकर एक करके दिखा दिया कि भारतीय एक राष्ट्र ही हैं जबकि अंग्रेज तो सबको स्वतन्त्र होने को छोड़ जा रहे थे।
लेकिन यहाँ यह ध्यान रखना अनिवार्य है की पूरी भारतीय जनता (रियासती और गैर रियासती दोनों) राष्ट्रिय सोच की नहीं होती और जनांदोलन करके रियासतों के मुखियों को मजबूर न करती तो भारत का दो बटे तीन हिस्सा अलग अलग देश बन गया होता।क्योंकि रजा और जमींदार तो चाहते ही थे की उनकी सत्ता बनी रहे।
इसलिए भारतीय उपमहाद्वीपीय जनता में राष्ट्र हमेशा से मौजूद था।नेताओं में तो खैर आज भी कितनो में है ? इसीलिए जनता में व्याप्त राषट्रीयता उसकी अभिव्यक्ति का अवसर आते ही वह अभिव्यक्त भी हो गयी।
और इसीलिए जन जन में सिक्त हमारा प्राचीन राष्ट्र भारत सदा बना रहेगा।
भारत में राष्ट्र बहुत पहले से ही मौजूद था।हाँ वह शासकों में नहीं विभिन्न राज्यों और रियासतों के अधीन रह रही जनता में समान रूप से विद्यमान था।और यह इतिहासिक तथ्य भी है कि आधुनिक काल का जो भारत है।उसको बनाने में ख़पीं 554 रियासतों के राजाओं से अधिक उनकी जनता की पहल पर निर्मित हो सका था।दक्षिण त्रावणकोर से लेकर उत्तर पश्चिम जोधपुर जूनागढ़ तक आम जनता के प्रत्यक्ष दबाव और आंदोलनों ने रियासतों को भारत में विलय करके एक राष्ट्र राज्य के निर्माण की नीव रखी।
इसलिए भी और गुप्त काल के प्राचीन वक्त में भी भारतीय राष्ट्र यहाँ की जनता में रच बस गया था ,मौर्य वंश से जो इस भारतीय राष्ट्रिय एकता के तत्व उदभूत व निर्मित हुए थे वह 1000 साल तक राजाओं में भी बने रहे।हर्ष के काल में जब भारत आखिरी बार राष्ट्रिय एकसूत्रता में बंधा दीखता है।तो तब भी वह राजाओ के नहीं आम जनमानस के आपसी संपर्क रहनसहन सोच और व्यवसाय व्यापर तथा शिक्षा के चलते था।
हाँ शुरुवाती मुस्लिम आक्रांताओं के आने तक राजपूत क्षत्रिय ब्राह्मण और वैश्य और शुद्र राज्य भारतीय राष्ट्र की राजनैतिक एकता को भूल आपस में लड़ने लगे थे।खूब कलह जारी था।
इसलिए हारे और गुलाम हुए।तथा हजार साल गुलाम रहे।बीच में अकबर ने फिर से एक बार अखिल भारतीय राष्ट्रिय एकता के तत्व को समझकर भारत को एकत्व के सूत्र में वैसे ही बांधने की कोशिश की जैसे कभी चाणक्य ने किट था और वैसे से भी बेहतर फिर सरदार पटेल ने 1947 में 554 रियासतों और ब्रिटिश भारत को मिलकर एक करके दिखा दिया कि भारतीय एक राष्ट्र ही हैं जबकि अंग्रेज तो सबको स्वतन्त्र होने को छोड़ जा रहे थे।
लेकिन यहाँ यह ध्यान रखना अनिवार्य है की पूरी भारतीय जनता (रियासती और गैर रियासती दोनों) राष्ट्रिय सोच की नहीं होती और जनांदोलन करके रियासतों के मुखियों को मजबूर न करती तो भारत का दो बटे तीन हिस्सा अलग अलग देश बन गया होता।क्योंकि रजा और जमींदार तो चाहते ही थे की उनकी सत्ता बनी रहे।
इसलिए भारतीय उपमहाद्वीपीय जनता में राष्ट्र हमेशा से मौजूद था।नेताओं में तो खैर आज भी कितनो में है ? इसीलिए जनता में व्याप्त राषट्रीयता उसकी अभिव्यक्ति का अवसर आते ही वह अभिव्यक्त भी हो गयी।
और इसीलिए जन जन में सिक्त हमारा प्राचीन राष्ट्र भारत सदा बना रहेगा।
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